Rajasthan

जालौर में होली के बाद भी जारी रहता रंगों का उत्सव, शीतला सप्तमी तक होती है गैर नृत्य की धूम

Last Updated:March 20, 2025, 13:20 IST

होली का उल्लास सिर्फ रंगों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में यह सात दिनों तक सांस्कृतिक धूमधाम के साथ जारी रहता है। जालौर में पारंपरिक गैर नृत्य इस पर्व को और खास बना देता है। होली के…और पढ़ेंX
ढोल-चंग
ढोल-चंग की गूंज और गैरियों की टोली…

जालौर में होली का रंग सिर्फ एक दिन का नहीं, बल्कि पूरे सात दिनों तक बरकरार रहता है. होली के रंगों में सराबोर जालौर जिले के ग्रामीण अंचल में शीतला सप्तमी तक पारंपरिक गैर नृत्य की धूम रहती है. गैर नृत्य की यह परंपरा राजा-महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है. जिसे आज भी पूरे हर्षोल्लास के साथ निभाया जाता है.

होली के दिन रंगों और अबीर-गुलाल के बीच जब गांवों में गैर की टोली निकलती है, तो पूरा माहौल संगीतमय हो जाता है. लेकिन यह उल्लास केवल होली तक सीमित नहीं रहता है. बल्कि अगले सात दिनों तक गांव-गांव में गैर नृत्य किया जाता है. शीतला सप्तमी तक गैर की धूम रहती है. जहां गैरिये ढोल की थाप पर पारंपरिक फाग गीत गाते हैं और चंग की गूंज पर नृत्य करते हैं.

ऐसे किया जाता है गैर नृत्यस्थानीय निवासी  वेलाराम ने  लोकल 18 को बताया कि गैर नृत्य करने वाले गैरिये गोल घेरे में ढोल-चंग की धुन पर कदम से कदम मिलाकर एक लयबद्ध नृत्य प्रस्तुत करते हैं. पारंपरिक वेशभूषा में सजे गैरिये सफेद धोती, सफेद अंगरखी, और केसरिया-गुलाबी पगड़ी पहनते हैं, पैरों में घुंघरू बांधकर जब वे नृत्य करते हैं. देखने वालों के कदम भी थम जाते हैं। गेरीये हंसी-मजाक कर माहौल को और भी रंगीन बना देते हैं.

राजा महाराजाओं के समय से जुड़ी परंपरागैर नृत्य को जीवंत बनाए रखने वाले भगवानाराम माली बताते हैं कि यह नृत्य मारवाड़ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतने ही उल्लास से निभाई जाती है.शीतला सप्तमी पर गैर नृत्य का अंतिम आयोजन होता है. जिसके साथ यह सात दिवसीय होली उत्सव संपन्न होता है. जालौर का ग्रामीण इलाका फाग गीतों, चंग की थाप और गैरियों की मस्ती में डूबा रहता है.


Location :

Jalor,Rajasthan

First Published :

March 20, 2025, 13:20 IST

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जालौर में होली के बाद भी जारी रहता रंगों का उत्सव, जानें मान्यता

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