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महाभारत का योद्धा बर्बरीक कैसे बने कलियुग के भगवान? क्या है श्री कृष्ण और बाबा खाटू श्याम का कनेक्शन!

Last Updated:May 18, 2025, 19:20 IST

Khatu Shyam History: महाभारत के योद्धा बर्बरीक की कहानी कौन नहीं जानता. लेकिन क्या आपको पता है तीन बाण धारी बर्बरीक कलियुग के भगवान कैसे बन गए? और उनका श्री कृष्ण से क्या कनेक्शन है. महाभारत का योद्धा बर्बरीक कैसे बने कलियुग के भगवान? जानें क्या है कहानी

बाबा खाटू श्याम.

सीकर. विश्व प्रसिद्ध बाबा श्याम की महिमा दिनों दिन बढ़ती जा रही है. बाबा के दरबार में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हरियाणा सहित देश विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. बाबा श्याम को भगवान श्री का अवतार भी माना जाता है. लेकिन, क्या आपको बाबा श्याम की पूरी कहानी के बारे में पता है. खाटूश्याम जी से जोड़ी खबरों की सीरीज में आज हम राक्षस पुत्र बर्बरीक से कलयुग के अवतार बाबा श्याम बनने की पूरी कहानी के बारे में बताएंगे.

भीम के पोते है बाबा श्याम महाभारत में वर्णित है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे, उन्हीं के पुत्र बर्बरीक थे. बर्बरीक देवी मां के भक्त थे. इनकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां ने उन्हें तीन तीर दिए थे, जिनमें से एक तीर से संपूर्ण वे पृथ्वी का विनाश कर सकते थे. ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था, तो बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती से युद्ध लड़ने की पेशकश की. तब बर्बरीक की माता ने सोचा कि कोरव की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी इसलिए शायद युद्ध में कौरव पांडवों पर भारी पड़ेंगे. तब अहिलावती ने कहा कि तुम हारने वाले के पक्ष में युद्ध लड़ोगे. इसके बाद माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए निकल पड़े. लेकिन, श्री कृष्ण को पता था कि जीत पांडवों की होने वाली है अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुंचते हैं तो वे कौरव पक्ष में युद्ध लड़ेंगे.

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बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान दियाइसलिए भगवान श्री कृष्णा ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के पास पहुंचे तब. भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया. दानशीलता के कारण बर्बरीक ने बिना किसी सवाल के अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान दे दिया. इसी दानशीलता के कारण श्री कृष्ण ने कहा कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे, तुम्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजा जाएगा, तुम कलयुग का अवतार और हारे का सहारा बनोगे. घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने जब भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान में दिया तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई तब श्री कृष्ण ने बराबरी के शीश को ऊंचाई वाली जगह पर रख दिया.

रूपवती नदी में बहकर खाटू पहुंचा बाबा श्याम का शीश बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा. युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को रूपवती नदी में बहा दिया. ऐसे में गर्भवती नदी से बर्बरीक यानी बाबा श्याम का शीश बहकर खाटू (उसे समय की खाटूवांग नगरी) आ गया. खाटूश्याम जी में रूपवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी. स्थानीय लोगों के अनुसार पीपल के पेड़ के पास रोज एक गाय अपने आप दूध देती थी ऐसे में लोगों को हैरानी हुई तो उन्होंने उस जगह खोदा तो बाबा श्याम का शीश निकला.

फाल्गुन मास की ग्यारस को मनाया जाता है बाबा श्याम का जन्मदिनबाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन मास की ग्यारस को मिला था इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन मास की ग्यारस को ही मनाया जाता है. खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का शीश चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया. इसके बाद नर्मदा देवी ने गर्भ गृह में बाबा श्याम की स्थापना की और जिस जगह बाबा श्याम को खोदकर निकाला गया वहां पर श्याम कुंड बना दिया गया.

authorimgअभिजीत चौहान

न्‍यूज18 हिंदी डिजिटल में कार्यरत. वेब स्‍टोरी और AI आधारित कंटेंट में रूचि. राजनीति, क्राइम, मनोरंजन से जुड़ी खबरों को लिखने में रूचि.

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