Rajasthan

Leopard’s Clan Growing In Jhalana Leopard Safari – झालाना लेपर्ड सफारी में बढ़ रहा लेपर्ड का कुनबा

इस साल पैदा हुए 10 नए शावक
20 से बढ़कर 41 हुई लेपर्ड की संख्या

जयपुर, 1 अगस्त
वाइल्ड लाइफ लवर्स (wild life lovers) के लिए यह सुकुन देने वाली खबर है। झालाना लेपर्ड सफारी (Jhalana Leopard Safari) में लेपर्ड का कुनबा बढ़ रहा है। इस साल अब तक यहां तकरीबन 10 नए शावक पैदा हो चुके हैं जिसके चलते अब यहां लेपर्ड की संख्या 20 से बढ़कर 41 हो गई है। नए शावकों की अठखेलियां यहां आने वाले पर्यटकों को रोमांचित कर रही हैं।
इन्होंने दिया शावकों को जन्म
इस वर्ष फीमेल लेपर्ड एलके ने तीन शावकों को जन्म दिया था। इसके बाद मिसेज खान से तीन शावक, बसंती के एक शावक, गजल के दो शावक और फीमेल लेपर्ड जलेबी ने एक शावक को जन्म दिया।
प्रेबेस बढ़ाने का प्रयास
वन विभाग भी लेपर्ड को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही उनकी कुनबा बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत है। अब यहां वन्यजीवों के भोजन के लिए प्रेबेस बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही लेपड्र्स की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। वन विभाग ने यहां जगह जगह ट्रैप कैमरे लगाए हैं जिससे इन पर निगरानी की जा सके साथ ही शिकारियों पर नजर भी रखी जा सके। एक समय था जबकि झालाना क्षेत्र में आमजन का आना जाना लगा रहता था साथ ही जिससे वन्यजीव सुरक्षित नहीं थे और शिकार की घटनाएं भी सामने आती थी लेकिन इस क्षेत्र में सफारी के रूप में विकसित होने के बाद इन घटनाओं पर रोक लगी है। 2018 में जब सफारी की शुरुआत हुई थी, तब जंगल को ऊंची दीवार से कवर किया गया। साथ ही वन्यजीवों के लिए जगह जगह पर वाटर पॉइंट बनाए गए, जिससे वह पानी की तलाश में इधर उधर नहीं भटके। शाकाहारी वन्यजीवों के लिए ग्रास लैंड डवलप की गई। पक्षियों के लिए फलों के पौधे लगाए गए है साथ ही हैबिटाट इम्प्रूवमेंट का काम किया गया जो अब भी जारी है।
पर्यटकों को होता है लेपर्ड का दीदार
सफारी की खासियत है कि यहां आने वाले अधिकांश पर्यटकों को लेपर्ड का दीदार होता है। यहां सबसे ज्यादा एडल्ट लेपड्स की साइटिंग होती है। इन दिनों मेल लेपर्ड राणा ज्यादा नजर आ रहा है। कुछ ही दिन पूर्व कजोड़ भी पर्यटकों को नजर आया। इसे काली माता के मंदिर के पास देखा गया। कजोड़ से पहले लेपर्ड जूलिएट ज्यादा नजर आती थी। फीमेल लेपर्ड में फ्लोरा सबसे ज्यादा दिखती है। झालाना में जन्मी क्लियोपैट्रा को भी पिछले दिनों तीन साल के बाद यहां फिर से देखा गया। इसके आकर्षक लुक और नीली आंखों की वजह से इस मादा पैंथर को क्लियोपैट्रा नाम दिया गया था। झालाना में पर्यटन के दौरान अक्सर ये मादा पैंथर पर्यटकों को नजर आ जाया करती थी लेकिन जून 2019 के बाद गायब हो गई थी लेकिन अब एक बार फिर इसे देखा गया। जिससे वन्यजीव प्रेमियों में खुशी ही लहर थी।
इतना ही नहीं कई लेपर्ड ऐसे भी हैं जो या तो यहां से दूसरे जंगलों में चले गए तो कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरे जंगलों से यहां आए हैं। अभी प्रिंस, ब्लू थंडर,पारो, डिस्कवरी और अर्जुन झालाना से निकलकर दूसरे वन क्षेत्रों में रह रहे हैं। अर्जुन कुछ दिन पहले ही आमेर के अचरोल में देखा गया था। लेपर्ड बघेरा और बहादुर दोनों दूसरे जंगलों से आकर यहां रह रहे हैं। कुछ माह पूर्व यहां एक फीमेल लेपर्ड को देखा गया था जो पहले कभी इस क्षेत्र में नजर नहीं आई थी। पर्यटकों ने उसका नाम चांदनी रखा था।
अब कॉरिडोर बनाए जाने पर फोकस
वन विभाग अब इस क्षेत्र में वन्यजीवों के लिए कॉरिडोर बनाए जाने के लिए प्रयासरत है क्योंकि झालाना वन क्षेत्र गलता वन से लगता है और गलता वन आमेर वन क्षेत्र से। आमेर फॉरेस्ट नाहरगढ़ सेंचुरी से तो नाहरगढ़ सेंचुरी अचरोल से, अचरोल जमवारामगढ़ सेंचुरी और जमवारामगढ़ सेंचुरी सरिस्का टाइगर रिजर्व से जुड़ी हुई है। ऐसे में झालाना वन क्षेत्र में बाहर से आने वाले लेपर्ड और अन्य वन्यजीवों का मूवमेंट भी अब बढऩे लगा है। ऐसे में इन वन्यजीवों के स्वच्छंद विचरण के लिए आवश्यक है कि यहां कॉरिडोर विकसित किया जाए जिससे इन वन्यजीवों को सुरक्षित वातावरण मिल सके और यह एक जंगल से दूसरे जंगल में आसानी से आ जा सके। कॉरिडोर बनने से इनके रिहाइशी इलाके में आने की संभावनाएं भी कम होंगी।
इनका कहना है
झालाना में लेपर्ड का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। साथ ही कई ऐसे लेपर्ड जो काफी समय से नजर नहीं आ रहे थे, उन्हें फिर से देखा गया है। इससे यहां आने वाले पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों में खुशी का माहौल है। हम भी उनकी सुरक्षा को और बेहतर बनाए जाने का प्रयास कर रहे हैं।
जनेश्वर चौधरी, रेंजर,
झालाना लेपर्ड सफारी

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