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ब्रज ही नहीं, यहां भी होली से अमावस्या तक गूंजती है रंगों की धूम! फूलों से बनते हैं खास रंग, जानें अनोखी परंपरा

Last Updated:March 24, 2025, 21:08 IST

भीलवाड़ा के प्राचीन दूधाधारी मंदिर में धुलंडी से अमावस्या तक ब्रज की तर्ज पर होली मनाई जाती है. ठाकुर जी महाराज के साथ फूलों और प्राकृतिक गुलाल से होली खेली जाती है.X
होली
होली खेलते हुए भक्त

हाइलाइट्स

भीलवाड़ा में धुलंडी से अमावस्या तक होली मनाई जाती है.प्राकृतिक गुलाल और फूलों से ठाकुर जी महाराज के साथ होली खेली जाती है.दूधाधारी मंदिर में यह परंपरा कई साल से चली आ रही है.

रवि पायक/भीलवाड़ा. आपने कृष्ण नगरी ब्रज की मशहूर होली के बारे में तो सुना होगा, जो 40 दिन तक धुलंडी तक मनाई जाती है. लेकिन, राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में भीलवाड़ा में धुलंडी के बाद अमावस्या तक एक खास होली खेली जाती है, जो ब्रज की तर्ज पर आयोजित होती है. इस दौरान प्राकृतिक गुलाल और फूलों का इस्तेमाल किया जाता है, और भक्त ठाकुर जी महाराज के साथ होली का आनंद लेते हैं. खास बात यह है कि भीलवाड़ा के प्राचीन दूधाधारी मंदिर में यह परंपरा कई साल से चली आ रही है.

शहर के प्राचीन श्री दूधाधारी गोपाल मंदिर में ब्रज की तर्ज पर होली महोत्सव आयोजित हुआ. इस दौरान भक्तों ने ठाकुर जी के संग फूलों से होली खेली और भजनों की धुन पर झूमते हुए नृत्य किया. मंदिर परिसर भक्तों की उमंग और आस्था से सराबोर नजर आया.

ऐसे होती है तैयारी भीलवाड़ा के सांगानेरी गेट स्थित प्राचीन श्री दूधाधारी गोपाल मंदिर के पुजारी पंडित कल्याण शर्मा ने बताया कि यहां ब्रज में होली वसंत पंचमी से धुलंडी तक चलती है, वहीं, मेवाड़ की यह अनोखी होली धुलंडी से अमावस्या तक मनाई जाती है. इस उत्सव को लेकर भक्तों में गजब का उत्साह रहता है. ठाकुर जी के संग फूलों और प्राकृतिक गुलाल से खेली जाने वाली इस होली का माहौल बेहद अलौकिक होता है. कई साल से चली आ रही इस परंपरा में विशेष रूप से फूलों को गर्म पानी में उबालकर उनका रंग तैयार किया जाता है. भीलवाड़ा और आसपास के कृष्ण भक्त इस अनूठी होली का आनंद लेने मंदिर में उमड़ पड़ते हैं.

जानें मंदिर का इतिहाससांगानेरी गेट स्थित प्राचीन श्री दूधाधारी गोपाल मंदिर लगभग 470 साल पुराना है. पुजारी पंडित कल्याण शर्मा के अनुसार, सं. 1609 में वसंत पंचमी के दिन युगल स्वरूप ठाकुर श्री गोपालजी महाराज यहां विराजमान हुए थे. मंदिर परिसर में शिव परिवार और बालाजी भी विराजित हैं. साल 1975 में अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु श्री निम्बार्काचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज ने गौलोकवासी महन्त श्री दीनबंधुशरण को मंदिर का महन्त नियुक्त किया था. समय के साथ मंदिर जीर्ण-शीर्ण होने लगा, जिसके बाद 23 अप्रैल 2018 को महन्त श्री दीनबंधुशरण जी ने जगद्गुरु श्री श्रीजी महाराज की आज्ञा और अनुग्रह से ठाकुर श्री गोपालजी महाराज के मंदिर के नवीन निर्माण का शिलान्यास कराया.

Location :

Bhilwara,Rajasthan

First Published :

March 24, 2025, 21:08 IST

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ब्रज ही नहीं, मेवाड़ में भी होती है अनोखी होली, 470 साल पुरानी परंपरा, जानें

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