आखिर कब तक मीडिया को सच्चाई की कीमत रमन कश्यप की तरह मौत के आगोश में जाकर चुकानी होगी। आज यह ज्वलंत प्रश्र प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रोनिक के साथ सोशल मीडिया के समक्ष ही नहीं बल्कि देश के सामने एक बार फिर सवाल किए हुए हैं। परन्तु जेड प्लस जैसी अनेक सुरक्षा तंत्र से घिरे शाही जिन्दगी बसर कर रहे हुकुमरान के कानों में जूं तक नहीं रेंगती है। उसने कभी नहीं सोचा कि देश के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले लोकतंत्र के जीवंत सुत्रधार मीडिया को सुरक्षा कैसे मिले।
देश में हर बार प्रत्रकार सुरक्षा कानून की मांग उठती है लेकिन हुकूमत हर बार उस का गला घोट देती है आखिर क्यों? कश्यप की पत्नी के नाम 45 लाख रूपए का चैक देने वाले हुक्मरान और रोती आंख के आंसू पहुंचने के लिए सांत्वना देने जैसे शब्दों के साथ अपनी राजनीति की रोटी सेकने वाले नेताओं से मेरा एक ही सवाल है कि क्या वे नासमझ बेटी-बेटे,पत्नी,मां-बाप,भाई की जिन्दगी की लाठी बन सकते हैं। वर्तमान दौर में सरकारी मुआवजे के 45 लाख रूपए क्या रमन कश्यप की कमी पूरी कर सकते है, नहीं? तो फिर हादसे को लेकर एक दूसरे के कपड़े फाडने की नौटंकी क्यों? क्या है किसी राजनेता के पास इस बात का जवाब।
देश का अघोषित चौथा स्तम्भ लोकतंत्र को सच्चाई के साथ जिन्दा रखने का मिशन था लेकिन अब आजादी के बाद यह मिशन मिडिया घरानों में तब्दील होने लग गया और घरानेदार राजनेताओं की कठपूतली बनकर रह गए। ऐसे में आने वाले कल में मीडिया सच्चाई उजागर करने में सक्षम रहेगे या नहीं इसमें संक्षय बरकरार रखा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे देश में मीडिया फ्रैण्डली के नाम से विख्यात है,देश के राजनेताओं में एक मात्र नेता है गहलोत जिनकी छोटे-बडे सभी मीडियाकर्मियों में अच्छी पैठ है। मीडिया भी गहलोत को बराबर सम्मान की नजरों से देखता है। वे भी संवाददाता सम्मेलन के दौरान अब तो खुलकर कहने लग गए कि मैं यहा कुछ भी कहूं छपेगा तो वहीं जो आपके मालिक लोग चाहेंगे। हंसी-ठिठौली के बीच गहलोत मीडिया की कितनी कटू सच्चाई को साफगोई के साथ बयां कर गए,यह समझने वाला ही समझ सकता है। देश के एकमात्र मीडिया फ्रैण्डली मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह प्रदेश क्षत्रप के रूप में तीसरा कार्यकाल है लेकिन मीडिया के कितने ही नजदीकी दोस्त हो पत्रकार सुरक्षा कानून लाने में तो वे भी अपने दोस्तों के लिए नकारा साबित हुए हैं।
रमन कश्यप तो कवरेज के दौरान मात्र हादसे का शिकार हुए है,लेकिन देश में आए दिन पत्रकारों पर जानलेवा हमले ही नहीं होते बल्कि उन्हें जान भी गवानी पड़ती है। छत्तीसगढ में तपन गोस्वामी पर भूमाफियों का जानलेवा हमला,मध्यप्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा नीरज सोनी पर जानलेवा से मारने की धमकी के साथ मुकदमा दर्ज होना,झारखंड में वरिष्ठ पत्रकार महादेव के परिवार पर जानलेवा हमला,अयोध्या में पाटेश्वरी सिंह पर लोहे की राड से जानलेवा हमला,राजस्थान में पत्रिका के पत्रकार हेमपाल गुर्जर, युवा पत्रकार अभिषेक सोनी की मौत , गिरधारी पालीवाल पर जानलेवा हमला जैसे आए दिन मामले राजस्थान प्रदेश में भी हो रहे हैं लेकिन पत्रकार सुरक्षा के नाम पर राज्य सरकार सुरक्षा मुहैया करवाने के नाम पर बौनी साबित हो रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ऐसे में अपनी राजनीति रोटी सेकने के नाम पर मुख्यमंत्री से पत्रकार सुरक्षा की मांग कर चुके है लेकिन केन्द्र में भाजपा सरकार होने के बावजूद उन्होंने देश के प्रधानमंत्री से देश के पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई मांग नहीं रखी है। अब इसे आप राजनीतिक दुकानदारी के नजरिए से देखें या फिर मुंह देखकर तिलक करना समझे। इन सब के लिए मैं इन राजनेताओं को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा हूं बल्कि हमारे उन जेबी साथियों को शत प्रतिशत जिम्मेदार मानता हूं जो इन राजनेताओं के चाटुकार बने रहकर लक्जरी जिन्दगी जी रहे है,जिसके चलते सच दिखाने वालों के लिए आज पत्रकार सुरक्षा कानून भी एक ख्वाब बना हुआ है मीडिया जगत के लिए।