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जहां इतिहास फिर जीवंत हुआ: ठाकुर केसरी सिंह बारहठ की 153वीं जयंती पर कोटा राष्ट्रभक्ति से हुआ सराबोर

कोटा. राजस्थान की वीरभूमि में ऐसे ही व्यक्तित्व जन्म लेते हैं, जिनकी गाथाएं समय को पार कर पीढ़ियों को दिशा देती हैं, उन्हीं महान आत्माओं में एक हैं क्रांति-पुंज ठाकुर केसरी सिंह बारहठ, जिनका जीवन किसी अध्याय से नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत की धड़कनों से लिखा गया है. देशभक्ति, साहस और त्याग का ऐसा अद्वितीय सम्मिश्रण, जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी और करोड़ों भारतीयों में स्वाधीनता की चेतना जगाई. आज उनकी जयंती केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि उस अमर पुकार को फिर से महसूस करने का अवसर है, जो हर युग में हमें बताती है—कि राष्ट्रधर्म सबसे ऊंचा है और उसके लिए किया गया बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता.

कर्मभूमि कोटा आज एक विशेष गरिमा और राष्ट्रभक्ति के भाव से सराबोर रहा, अवसर था महान क्रांतिकारी ठाकुर केसरी सिंह बारहठ की 153वीं जयंती का. भले ही समारोह सादगीपूर्ण था, पर उसमें निहित श्रद्धा और गौरव अभूतपूर्व थे. सुबह-सुबह शहर के प्रमुख तिराहे पर स्थित केसरी सिंह बारहठ की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. जैसे ही पुष्पहार प्रतिमा पर चढ़ाए गए, वातावरण में इतिहास की अदम्य गूंज मानो फिर से जीवित हो उठी.

स्वतंत्रता केवल एक घटना नहीं, बल्कि असंख्य बलिदानों की गाथा

इसके बाद हुए जयंती समारोह में स्वाधीनता संग्राम को नई दिशा देने वाले बारहठ परिवार के अप्रतिम योगदान को आत्मीयता से स्मरण किया गया. ठाकुर केसरी सिंह के साथ-साथ उनके वीर भाई जोरावर सिंह बारहठ और कम उम्र में ही देश के लिए प्राण न्यौछावर कर देने वाले अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ को भी श्रद्धापूर्वक याद किया गया. यह वही परिवार है जिसने अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर राजस्थान की नस-नस में क्रांति का संचार किया था. माणिक भवन, जो बरसों से क्रांतिकारी बारहठ परिवार की स्मृतियों का साक्षी रहा है, आज फिर श्रद्धा का केंद्र बना रहा. समारोह में बारहठ परिवार के सदस्य, कोटा शहर के साहित्यकार, इतिहास शोधार्थी और कई जाने-माने कवि उपस्थित रहे. सबके चेहरों पर एक ही भाव था गौरव और कृतज्ञता.

कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने ठाकुर केसरी सिंह के क्रांति-कर्म, उनके अटूट साहस और विचारों की विराटता को याद किया, उन्होंने बताया कि किस तरह “चेतावनी” जैसी कविताओं से उन्होंने युवाओं में वीरता का संचार किया और महाराणा प्रताप की परंपरा को आधुनिक युग में जीवित रखा. उनके लिखे हर शब्द में देशभक्ति की ऐसी ज्वाला थी, जिसने अंग्रेजी शासन की नीतियों को चुनौती दी.

समारोह के अंत तक वातावरण में एक ही संदेश प्रतिध्वनित हो रहा था स्वतंत्रता केवल एक घटना नहीं, बल्कि असंख्य बलिदानों की गाथा है और उन गाथाओं में ठाकुर केसरी सिंह बारहठ का नाम सदियों तक प्रेरणा देता रहेगा.  कोटा ने आज फिर साबित किया कि वह न सिर्फ शिक्षा का केंद्र है, बल्कि क्रांतिकारी इतिहास की एक उज्ज्वल ज्योति भी है.

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