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रूस और अमेरिका में नेताओं की सेहत छिपाने की परंपरा क्यों रही है?

Hiding the ill health of Leaders: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के स्वास्थ्य को लेकर लंबे समय से अटकलें और अफवाहें सुनने को मिलती रही हैं. पुतिन के बारे में दावा किया जाता रहा है कि वह कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं. लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने उनके बारे में एक सनसनीखेज दावा कर पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है. उन्होंने दावा किया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ‘जल्द मर जाएंगे.’ जेलेंस्की का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पुतिन की सेहत को लेकर अफवाहें चल रही हैं. उनका यह बयान काफी साहसिक माना जा रहा है. 

हालांकि क्रेमलिन ने ऐसे किसी भी दावे को खारिज कर दिया है कि पुतिन गंभीर रूप से बीमार हैं. 71 वर्षीय पुतिन ने हमेशा रूसी लोगों को यह दिखाने का प्रयास किया है कि वह कितने मजबूत और दृढ़ हैं. तमाम देशों में अपने शीर्ष नेताओं की खराब सेहत को छिपाने की परंपरा नई नहीं है. खासकर रूस और अमेरिका जैसे देशों में, जहां सत्ता की स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसले इस पर निर्भर होते हैं, वहां इसे छिपाने की प्रवृत्ति ज्यादा देखी गई है.

किन देशों में होता है ऐसा ज्यादानेताओं की बीमारी को छिपाने का चलन आमतौर पर उन देशों में ज्यादा देखा गया है जहां सत्ता केंद्रीकृत होती है और सरकार अपनी छवि को बनाए रखने के लिए पारदर्शिता से बचती है. हालांकि, लोकतांत्रिक देशों में भी सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेताओं की सेहत को पूरी तरह उजागर करने में संकोच किया जाता रहा है. आज के दौर में सोशल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता के कारण यह पहले जितना आसान नहीं रहा, लेकिन फिर भी कई देशों में यह परंपरा आज भी जारी है.

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रूस में नेताओं की सेहत छिपाने की परंपरारूस (सोवियत संघ) में नेताओं की खराब सेहत को जनता और यहां तक कि सरकार के कई वरिष्ठ सदस्यों से भी छिपाया जाता रहा है. साल 1924 में जब व्लादिमीर लेनिन स्ट्रोक के कारण काम करने में असमर्थ हो गए, तब भी उनकी असली हालत को गुप्त रखा गया. जनता को यह बताया गया कि वे स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे अपंग हो चुके थे. इसी तरह 1953 में जोसेफ स्टालिन की मृत्यु से पहले कई दिनों तक उनकी खराब हालत को गुप्त रखा गया. जब वे गंभीर रूप से बीमार हुए, तो उनके आसपास के अधिकारियों ने सत्ता संघर्ष की तैयारी में इसे छिपाने की कोशिश की. 

1970 के दशक के अंत तक लियोनिद ब्रेझनेव शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो चुके थे, लेकिन सोवियत मीडिया ने इसे छिपाए रखा. वे सार्वजनिक रूप से थके और धीमे दिखते थे, लेकिन उनकी मौत तक इस बात को स्वीकार नहीं किया गया. हाल के वर्षों में पुतिन की सेहत को लेकर कई अटकलें लगाई गई हैं, लेकिन क्रेमलिन इसे गुप्त रखता है. अफवाहें हैं कि वे पार्किंसन या कैंसर जैसी किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, लेकिन आधिकारिक रूप से इसे हमेशा खारिज किया जाता रहा है.

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अमेरिका में भी मिलते हैं ऐसे उदाहरणअमेरिका में भी राष्ट्रपतियों की गंभीर बीमारियों को छिपाने की परंपरा रही है, हालांकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह हमेशा संभव नहीं होता है. 1919 में वुडरो विल्सन को स्ट्रोक आया था, जिससे वे काफी हद तक अक्षम हो गए थे. लेकिन उनकी पत्नी एडिथ विल्सन ने सरकार चलाने का जिम्मा संभाला और व्हाइट हाउस ने इस बात को छिपाने की पूरी कोशिश की. फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट (1945) पोलियो से प्रभावित थे और अपने आखिरी दिनों में उनका स्वास्थ्य बेहद खराब था. लेकिन इसे छिपाने के लिए मीडिया को उनकी तस्वीरें और वीडियो दिखाने से बचाया गया. उनकी मृत्यु के बाद ही जनता को उनकी असली हालत का अंदाजा हुआ. 

1960 के दशक में जॉन एफ. कैनेडी एडिसन रोग और पीठ की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई. वे भारी मात्रा में पेनकिलर और अन्य दवाएं लेते थे, लेकिन उनकी छवि एक युवा और ऊर्जावान नेता की बनी रही. 80 के दशक में रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल के दौरान उनकी याददाश्त कमजोर होने के संकेत मिलने लगे थे. उनके राष्ट्रपति पद से हटने के कुछ साल बाद अल्जाइमर का खुलासा हुआ, लेकिन अटकलें हैं कि वे अपने अंतिम कार्यकाल के दौरान ही इस बीमारी से प्रभावित थे.

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चीन में भी रही है यह परंपरानेताओं की खराब सेहत को छिपाने की परंपरा केवल रूस और अमेरिका तक सीमित नहीं रही है. कई अन्य देशों में भी ऐसा हुआ है, खासकर जहां सत्ता केंद्रीकृत होती है या जहां तानाशाही और अधिनायकवादी शासन रहा है. जैसे चीन में भी शीर्ष नेताओं की बीमारी और स्वास्थ्य संबंधी मामलों को गुप्त रखा जाता रहा है. माओ ज़ेदोंग के शासनकाल के अंतिम वर्षों में उनकी सेहत तेजी से गिर रही थी, लेकिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने इसे छिपाने की कोशिश की. जब 1976 में उनकी मृत्यु हुई, तब तक आम जनता को उनकी गंभीर स्थिति के बारे में बहुत कम जानकारी थी. इसी तरह देंग शियाओपिंग (1997) काफी कमजोर हो गए थे और सार्वजनिक आयोजनों से दूर हो गए थे, लेकिन चीनी सरकार ने उनकी बीमारी के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी.

उत्तर कोरिया दिखाता है अपने नेताओं को अजेयउत्तर कोरिया में नेताओं की छवि को दिव्य और अजेय दिखाने की कोशिश की जाती है, इसलिए उनकी खराब सेहत छिपाई जाती है. जब किम जोंग-इल को 2008 में स्ट्रोक हुआ, तब उत्तर कोरियाई मीडिया ने इसे गुप्त रखा और जनता को उनके बारे में बहुत कम जानकारी दी गई. 2020 में किम जोंग-उन कई हफ्तों तक सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे, जिससे उनकी सेहत को लेकर अटकलें बढ़ गईं. बाद में रिपोर्ट्स आईं कि उनकी सर्जरी हुई थी, लेकिन आधिकारिक रूप से कुछ भी स्वीकार नहीं किया गया.

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और किन देशों में होता है ऐसा क्यूबा में फिदेल कास्त्रो (2006) की बीमारी को लंबे समय तक गुप्त रखा गया. 2006 में जब वे गंभीर रूप से बीमार हुए, तो उनकी अनुपस्थिति को साधारण स्वास्थ्य समस्या बताया गया. बाद में पता चला कि वे पेट की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. उनके उत्तराधिकारी राउल कास्त्रो के बारे में भी कई बार उनकी सेहत को लेकर जानकारी सीमित रखी गई. वेनेजुएला में ह्यूगो चावेज़ (2013) को कैंसर हुआ, तो वे महीनों तक पब्लिक लाइफ से गायब रहे. सरकार ने उनकी बीमारी को छिपाने की पूरी कोशिश की और जब उनकी हालत बहुत बिगड़ गई, तब भी उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में जनता को कुछ नहीं बताया गया. उनकी मृत्यु की खबर भी देरी से घोषित की गई. 

हिटलर की खराब सेहत भी छिपाई गई1940 के दशक में एडॉल्फ हिटलर को पार्किंसन, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और मानसिक समस्याएं थीं, लेकिन जर्मनी की नाजी सरकार ने इसे गुप्त रखा. युद्ध के अंतिम दिनों में उनकी हालत बहुत खराब हो गई थी, लेकिन उनकी छवि को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रचार तंत्र ने इसे छिपाने की कोशिश की. 

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फ्रांस और ब्रिटेन में क्या स्थितिफ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा मितरां (1981-1995) को अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही कैंसर हो गया था, लेकिन उन्होंने इसे एक दशक तक छिपाए रखा. जनता को यह जानकारी तब मिली जब वे अपने अंतिम वर्षों में थे. ब्रिटेन में मीडिया अपेक्षाकृत स्वतंत्र है, लेकिन कुछ मामलों में नेताओं की सेहत को लेकर पर्दा डाला गया. जैसे विंस्टन चर्चिल को 1953 में एक बड़ा स्ट्रोक आया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे छिपाने की कोशिश की. वे प्रधानमंत्री पद पर बने रहे, जबकि उनकी हालत काम करने लायक नहीं थी. 

भारत में क्या रहा है रिवाजभारत में नेताओं की सेहत छिपाने की परंपरा पश्चिमी देशों जितनी व्यापक नहीं रही, लेकिन कुछ उदाहरण मिले हैं. लाल बहादुर शास्त्री (1966) की ताशकंद में मृत्यु को लेकर कई रहस्य हैं. कहा जाता है कि उनकी सेहत को लेकर आधिकारिक रिकॉर्ड बहुत सीमित रखे गए थे. इंदिरा गांधी (1984) की हत्या से पहले उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थीं, लेकिन इन पर ज्यादा चर्चा नहीं की गई. अटल बिहारी वाजपेयी अपने अंतिम समय में गंभीर रूप से बीमार हो गए थे, लेकिन सरकार ने उनकी सेहत की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की. 

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नेताओं की बीमारी छिपाने की वजहअगर किसी देश के नेता की बीमारी सार्वजनिक हो जाए तो राजनीतिक स्थिरता आ सकती है. इससे विपक्ष और बाहरी ताकतों में यह संकेत जा सकता है कि नेतृत्व कमजोर है. कई बार सरकारें नहीं चाहतीं कि जनता अस्थिरता को लेकर चिंतित हो जाए, इसलिए वे बीमारी को छिपाती हैं. कई नेता और उनकी टीमें यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि वे अंतिम समय तक सत्ता में बने रहें, इसलिए उनकी बीमारी को सार्वजनिक नहीं किया जाता. हालांकि, 21वीं सदी में मीडिया की बढ़ती पहुंच और इंटरनेट की वजह से नेताओं की सेहत छिपाना पहले जितना आसान नहीं रहा. फिर भी, कई देश इस परंपरा को बनाए रखे हुए हैं. खासकर जहां सत्ता केंद्रीकृत होती है और लोकतांत्रिक संस्थाएं उतनी मजबूत नहीं होतीं वहां ये ज्यादा देखने को मिलता है. 

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