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‘अरट्टई इस्तेमाल करें…’ WhatsApp हुआ ब्लॉक तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए 2 डॉक्टर, जज बोले- यह मौलिक अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि व्हाट्सएप अकाउंट का इस्तेमाल करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आधार पर प्लेटफॉर्म को संवैधानिक उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने दो डॉक्टरों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने ब्लॉक किए गए व्हाट्सएप अकाउंट को बहाल करने की मांग की थी. अदालत ने साफ कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका केवल राज्य या उसकी एजेंसियों के खिलाफ दायर की जा सकती है, निजी कंपनियों के खिलाफ नहीं.‘व्हाट्सएप कोई राज्य है क्या?’

इस सुनवाई के दौरान जब वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पवनी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया कि उनके मुवक्किलों का अकाउंट बहाल किया जाए, तो अदालत ने कहा, ‘आपका मौलिक अधिकार व्हाट्सएप तक पहुंचना कैसे हो गया? क्या व्हाट्सएप कोई राज्य है?’

पीठ ने यह भी कहा कि अगर अकाउंट ब्लॉक किए जाने पर याचिकाकर्ताओं को आपत्ति है, तो वे अन्य कानूनी उपाय जैसे सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

डॉक्टरों ने लगाया था मनमानी का आरोप

यह याचिका डॉ. रमन कुंद्रा और एसएन कुंद्रा नाम के दो डॉक्टरों ने दायर की थी. वे एक क्लिनिक और पॉली-डायग्नोस्टिक सेंटर चलाते हैं. उनका कहना था कि 13 सितंबर 2025 को बिना किसी पूर्व सूचना या कारण बताए उनका व्हाट्सएप अकाउंट ब्लॉक कर दिया गया.

डॉ. रमन कुंद्रा का कहना था कि वे पिछले दस साल से अपने मरीजों से संपर्क में रहने और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी शेयर करने के लिए वॉट्सएप का इस्तेमाल कर रही थीं. उन्होंने आरोप लगाया कि अकाउंट ब्लॉक किए जाने की वजह शायद उनके द्वारा साझा किए गए वे संदेश थे, जो संविधान की प्रस्तावना में बताए गए मूल्यों का समर्थन करते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 14 सितंबर को समीक्षा अनुरोध (review request) भेजा गया था, जिसे व्हाट्सएप ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अकाउंट ब्लॉक रहना जारी रहेगा.

याचिका में क्या कहा गया था?

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि व्हाट्सएप की कार्रवाई ‘मनमानी, एकतरफा और अधिकारों का उल्लंघन करने वाली’ है, जिससे उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और पेशा अपनाने के अधिकार का हनन हुआ है. उन्होंने यह भी कहा कि व्हाट्सएप अब ‘आवश्यक संचार माध्यम’ बन चुका है और इसका बाजार में प्रभुत्व इसे सार्वजनिक दायित्व वाला प्लेटफॉर्म बनाता है. इसलिए, अकाउंट ब्लॉक करने जैसी कार्रवाई न्यायिक जांच के दायरे में आनी चाहिए.

‘निजी कंपनी पर नहीं चल सकती रिट’

सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि व्हाट्सएप एक निजी कंपनी है और कोई ‘सार्वजनिक कार्य’ नहीं करती. इसलिए, अनुच्छेद 32 के तहत इसके खिलाफ रिट याचिका स्वीकार्य नहीं है.

जब अधिवक्ता पवनी ने यह स्वीकार किया कि व्हाट्सएप राज्य नहीं है, तब न्यायाधीशों ने कहा कि यहां तक कि हाई कोर्ट के समक्ष भी ऐसी रिट याचिका टिक नहीं पाएगी. पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि आज ‘अन्य संचार माध्यम’ मौजूद हैं, जिनमें देश में विकसित स्वदेशी मैसेजिंग एप्स भी शामिल हैं.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस मेहता ने कहा, ‘दूसरे मैसेजिंग एप्स हैं, आप उनका उपयोग कर सकते हैं. हाल ही में एक देसी एप आई है, अरट्टई… इसे इस्तेमाल करो. मेक इन इंडिया!’ अरट्टई भारतीय कंपनी जोहो कॉर्पोरेशन का बनाया एक इंस्टेंट मैसेजिंग एप है.

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