चीफ जस्टिस ऑप इंडिया CBI के डायरेक्टर की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं? VP जगदीप धनखड़ ने उठाया सवाल

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Last Updated:February 15, 2025, 09:59 IST
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति में चीफ जस्टिस की भूमिका पर सवाला उठाया. वह शुक्रवार को नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सीबीआई के डायरेक्टर की नियुक्ति में सीजेआई की भागीदारी पर उठाए सवाल. (ANI)
हाइलाइट्स
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने CBI निदेशक की नियुक्ति में CJI की भागीदारी पर सवाल उठाया.धनखड़ ने कहा कि कार्यकारी नियुक्तियों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप अनुचित है.उन्होंने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत पर बहस की आवश्यकता बताई.
भोपाल. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सीबीआई निदेशक जैसे कार्यकारी नियुक्तियों में भारत के चीफ जस्टिस की भागीदारी पर सवाल उठाया है. उन्होंने शुक्रवार को भोपाल में नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी यानी राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने सवाल किया कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आखिर सीबीआई यानी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के डायरेक्टर जैसे शीर्ष पदों पर नियुक्तियों में कैसे शामिल हो सकते हैं? अब ऐसे मानदंडों पर फिर से विचार करने का समय आ गया है.
जगदीप धनखड़ ने वहां मौजूद लोगों से सवाल किया, ‘हमारे जैसे देश में या किसी भी लोकतंत्र में, वैधानिक निर्देश के जरिये प्रधान न्यायाधीश सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में कैसे शामिल हो सकते हैं? क्या इसके लिए कोई कानूनी दलील हो सकती है? मैं इस बात की सराहना कर सकता हूं कि वैधानिक निर्देश इसलिए बने, क्योंकि उस समय की कार्यपालिका ने न्यायिक फैसले के आगे घुटने टेक दिए थे. लेकिन अब इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है. यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता है. हम भारत के चीफ जस्टिस को किसी शीर्ष स्तर की नियुक्ति में कैसे शामिल कर सकते हैं!’
…तो जवाबदेही नहीं रहेगीधनखड़ ने कहा कि न्यायिक आदेश के जरिये कार्यकारी शासन एक ‘संवैधानिक विरोधाभास है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता है.’ उन्होंने कहा कि सभी संस्थानों को अपनी संवैधानिक सीमा के भीतर काम करना चाहिए. सरकारें विधायिका के प्रति जवाबदेह होती हैं. वे समय-समय पर मतदाताओं के प्रति भी जवाबदेह होती हैं. लेकिन अगर कार्यकारी शासन अहंकारी हो या आउटसोर्स किया गया है, तो जवाबदेही नहीं रहेगी.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि विधायिका या न्यायपालिका की ओर से शासन में कोई भी हस्तक्षेप ‘संविधानवाद के विपरीत’ है. उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र संस्थागत अलगाव पर नहीं, बल्कि समन्वित स्वायत्तता पर चलता है. निस्संदेह, संस्थाएं अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करते हुए उत्पादक एवं इष्टतम योगदान देती हैं.’ न्यायिक समीक्षा की शक्ति पर धनखड़ ने कहा कि यह एक ‘अच्छी बात’ है, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि कानून संविधान के अनुरूप हों.
वर्तमान स्थिति पर पुनर्विचार जरूरीधनखड़ ने कहा, ‘न्यायपालिका की सार्वजनिक उपस्थिति मुख्य रूप से निर्णयों के माध्यम से होनी चाहिए. निर्णय स्वयं बोलते हैं. अभिव्यक्ति का कोई अन्य तरीका… संस्थागत गरिमा को कमजोर करता है. मैं वर्तमान स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहता हूं, ताकि हम फिर से उसी प्रणाली में आ सकें, एक ऐसी प्रणाली जो हमारी न्यायपालिका को उत्कृष्टता दे सके. जब हम दुनिया भर में देखते हैं, तो हमें कभी भी न्यायाधीशों का वह रूप नहीं मिलता, जैसा हम सभी मुद्दों पर यहां देखते हैं.’
न्यायशास्त्रीय बहस जरूरीइसके बाद उन्होंने मूल संरचना सिद्धांत पर चल रही बहस पर भी बात की. उन्होंने कहा कि इसके अनुसार संसद भारतीय संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताओं में संशोधन नहीं कर सकती. केशवानंद भारती मामले पर पूर्व सॉलिसिटर जनरल अंध्या अर्जुन की पुस्तक (जिसमें यह सिद्धांत स्पष्ट किया गया था) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘पुस्तक पढ़ने के बाद, मेरा विचार है कि संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का एक बहस योग्य, न्यायशास्त्रीय आधार है.’
Location :
Bhopal,Madhya Pradesh
First Published :
February 15, 2025, 09:36 IST
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