टीएन शेषन: चुनाव आयोग की ताकत का अहसास कराने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त

Last Updated:February 18, 2025, 17:48 IST
TN Seshan Remembered: ज्ञानेश कुमार भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे, वह राजीव कुमार की जगह लेंगे. टीएन शेषन जब 90 के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त बने तो उन्होंने चुनाव आयोग की ताकत का अहसास कराया था और चुना…और पढ़ें
टीएन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त पद की गरिमा बढ़ाने वाले काम किए.
हाइलाइट्स
ज्ञानेश कुमार नए मुख्य चुनाव आयुक्त बनेटीएन शेषन ने चुनाव आयोग की ताकत दिखाईचुनाव सुधार कर निष्पक्षता लाने का काम किया
TN Seshan Remembered: ज्ञानेश कुमार भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे. वह राजीव कुमार की जगह लेंगे जो 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं. राजीव कुमार ढाई साल तक सीईसी के पद पर रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली तीन सदस्सीय सिलेक्शन कमेटी ने सोमवार शाम को ज्ञानेश कुमार के नाम की सिफारिश की. उनके नाम पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मुहर लगा दी. चुनाव आयुक्त के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है. सिलेक्शन कमेटी के दो अन्य सदस्य गृह मंत्री अमित शाह और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हैं.
पंरपरा के अनुसार सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त को ही मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता रहा है. राजीव कुमार के बाद ज्ञानेश कुमार सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त हैं. ज्ञानेश कुमार केरल कैडर के 1988 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए जाने के कारण उनकी जगह रिक्त हुए पद पर डॉ. विवेक जोशी की नियुक्ति की गई है. दूसरे आयुक्त उत्तराखंड कैडर के अधिकारी सुखबीर सिंह संधू हैं. आइए जानते हैं कि आखिर मुख्य चुनाव आयुक्त की कितनी पावर होती है? अगर सीईसी सख्त हो तो देश में होने वाले चुनावों पर उसका कितना प्रभाव पड़ता है?
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आयोग की ताकत का कराया अहसासमौजूदा पीढ़ी ने तो वो मंजर नहीं देखा, लेकिन मध्य वय के लोगों को ये जरूर याद होगा कि पहले चुनावों में किस तरह बेईमानी की जाती थी. चुनाव में बेहिसाब खर्च किया जाता था. प्रचार करने को लेकर भी कोई नियम कायदा नहीं था. राजनीतिक दल और दबंग और बाहुबली उम्मीदवार जमकर बूथ कैप्चरिंग करते थे. वोटरों से कह दिया जाता था कि आप घर जाइए आपका वोट डाल दिया गया है. ऐसे में चुनाव आयोग बेबस और लाचार नजर आता था. लेकिन जब 90 के दशक में टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बने तो उन्होंने चुनाव आयोग की ताकत का अहसास कराया. वह देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे.
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सरकारें भी करती थीं दबंगई80 के दशक में जब बिहार में लालू यादव और पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की मार्क्सवादी सरकारें थीं तो ये देखा जाता था कि चुनाव के दौरान इन सरकारों की दंबंगई के आगे चुनाव आयोग भी पानी मांगने लगता था. इन राज्यों से बड़े पैमाने पर चुनाव के दौरान धांधलियों की खबरें आती थीं. उन दिनों चुनाव के दौरान केंद्रीय बल तैनात नहीं होते थे. अगर होते भी थे तो बहुत छोटी संख्या में. चुनाव स्थानीय प्रशासन और राज्य पुलिस की निगरानी में कराए जाते थे. उस समय नौकरशाही और ज्यादातर अफसर और राज्य में सत्तासीन सरकारों और उसके इशारों पर नाचते थे.
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टीएन शेषन बन गए मिसालटीएन शेषन 12 दिसंबर 1990 को मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे. वह 11 दिसंबर 1996 तक इस पद पर रहे. इन छह सालों में पद की गरिमा को बहाल किया. इसीलिए आज भी अगर किसी सख्त चुनाव आयुक्त का जिक्र होता है तो टीएन शेषन की मिसाल दी जाती है. उनके पहले और कमोबेश उनके बाद चुनाव आयोग जैसी संस्था और चुनाव आयुक्त जैसे पद की गरिमा को ग्रहण लग गया. शेषन ने अपने कार्यकाल में यह साबित कर दिखाया कि चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त चाह लें तो चुनावों के दौरान ना केवल निष्पक्षता बरकरार रह सकती है बल्कि भयमुक्त चुनाव भी हो सकते हैं.
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ताकत कम करने की कोशिश हुईशेषन के कार्यकाल के बाद सरकारों को मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से इस कदर भय महसूस हुआ कि उन्हें लगा कि एक आदमी अगर चुनाव आयोग में इतना ज्यादा ताकतवर हो गया तो ना जाने क्या कहर ढाह दे. लिहाजा चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयु्क्त पद के सृजित किए गए. ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त पर अंकुश लगाने के लिए किया गया. क्योंकि किसी गतिरोध की स्थिति में तीन में से दो की सहमति अनिवार्य.होगी. अब अकेला मुख्य चुनाव आयुक्त कुछ नहीं कर सकता.
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कराये कई अहम चुनाव सुधार देश के दबंग चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले टीएन शेषन नौकरशाही में भी सुधार के जनक थे. ईमानदारी और कानून के प्रति अपनी निष्ठा की वजह से वह बहुत से लोगों को खटकते थे. उनके विरोधी उनको सनकी और तानाशाह भी कहते थे. हालांकि देश के बड़े वर्ग के लिए वह ऐसे नायक बन गए, जो चुनावों में सही मायने में पारदर्शिता, निष्पक्षता लेकर आया. उन्होंने चुनावों को सत्ता में बैठी पार्टियों, दबंगई, पैसे की ताकत आदि से दूर करके साफसुथरा बनाने का प्रयास किया. उन्हें इस बात का भी लालच नहीं था कि रिटायर होने के बाद उन्हें कोई मलाईदार ओहदा मिल जाए.
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1954 में बने थे आईएएस अधिकारीटीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ में हुआ था. उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया और फिर मास्टर डिग्री ली. शुरू में शेषन कॉलेज लगे, लेकिन सैलरी कम होने के कारण वो नौकरी छोड़ दी. 1954 में वह आईएएस में सेलेक्ट हुए. 1955 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में ट्रेनी के तौर पर करियर शुरू किया. उन्होंने आईएएस बनने के बाद हर कदम पर अपनी छाप छोड़ी. कभी किसी के दबाव में नहीं आए. इसलिए ब्यूरोक्रेसी में अपने सीनियर और नेताओं से उनके विवाद भी खूब हुए. 1962 में उनका अपने एक सीनियर से झगड़ा हो गया जिस वजह से उनका सचिवालय से ट्रांसफर कर दिया गया. उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की बातें जब तमिलनाडु के तत्कालीन उद्योग और परिवहन मंत्री रामास्वामी वेंकटरमन तक पहुंची तो उन्होंने उन पर भरोसा जताया. हालांकि बाद में उनकी राज्य के मुख्यमंत्री से नहीं बनी तो दिल्ली ट्रांसफर कर दिए गए.
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स्वामी ने दिया था सीईसी पद का प्रस्ताव80 के दशक में दिल्ली में नियुक्ति के दौरान उनकी नजदीकी उस समय प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी से बढ़ी. उनको आंतरिक सुरक्षा का सचिव बनाया गया, जिस पद पर 1989 तक रहे. दस महीने बाद वह कैबिनेट सचिव बनाए गए. हालांकि 1989 में कांग्रेस की हार के बाद शेषन का तबादला योजना आयोग में कर दिया गया. जब चंद्रशेखर की सरकार बनी तो कानून मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त पद का आफर दिया. शुरू में वह इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन फिर अपने करीबियों से सलाह मशविरा करने के बाद ये पद स्वीकार कर लिया. दिसंबर 1990 में उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
February 18, 2025, 17:48 IST
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सीईसी के नाम पर क्यों याद आते हैं शेषन, जिन्होंने जगाया था चुनावों पर भरोसा